कोई सवाल-ए-ख़ुदा-ओ-सनम नहीं ऐ दोस्त मैं क्या करूँ मिरी गर्दन में ख़म नहीं ऐ दोस्त हमें यही है मुनासिब कि एक सू हो लें जगह मियान-ए-वजूद-ओ-अदम नहीं ऐ दोस्त ख़ुशामदों से निकलता नहीं है काम यहाँ मोआ'मला है ख़ुदा से सनम नहीं ऐ दोस्त अगरचे सर्द अँधेरे हैं बाइस-ए-तकलीफ़ मगर ये गर्म उजाले भी कम नहीं ऐ दोस्त अजब मिज़ाज है इन मय-कदा नशीनों का कि क़द्र-ए-जाम तो है क़द्र-ए-जम नहीं ऐ दोस्त खुला है और खुलेगा 'जमील' सब के लिए ये मय-कदा है कुनिशत-ओ-हरम नहीं ऐ दोस्त