कोई साया न कोई हम-साया आब-ओ-दाना ये किस जगह लाया दोस्त भी मेरे अच्छे अच्छे हैं इक मुख़ालिफ़ बहुत पसंद आया हल्का हल्का सा इक ख़याल सा कुछ भीनी भीनी सी धूप और छाया इक अदा थी कि राह रोकती थी इक अना थी कि जिस ने उकसाया हम भी साहिब दिलाँ में आते हैं ये तिरे रूप की है सब माया चल पड़े हैं तो चल पड़े साईं कोई सौदा न कोई सरमाया उस की महफ़िल तो मेरी महफ़िल थी बस जहाँ-दारियों से उकताया सब ने तारीफ़ की मिरी 'शहपर' और मैं अहमक़ बहुत ही शरमाया