कोई तो था धनक धनक ख़्वाब में या ख़याल में रंग अजीब घुल गए कैफ़िय्यत-ए-मलाल में मोहर थी मिरे नुत्क़ पर तेरे लबों की नग़्मगी वर्ना जवाब थे छुपे तेरे हर इक सवाल में बोल तू सोच सोच कर चल तू सँभल सँभल के चल की है बहुत गुलो की बात हम ने तिरी मिसाल में सर्द दिनों की तरह गुम हो गई अपनी ज़िंदगी फ़र्क़ कहाँ रहा कोई माह में और साल में मेरे रिवाक़-ए-दिल में तू चलता था कितने नाज़ से आ गई कैसे अब लचक तेरी सबा सी चाल में मेरे फ़िराक़ में तिरी उम्र ठहर गई थी क्या बाल सफ़ेद हो गए मेरे तिरे ख़याल में मौसम-ए-ताज़ा हो कभी मेरी तरफ़ भी इक नज़र उतरे कोई नया परिंद मेरे ग़मों के ताल में अपने किनारा कर न अब 'बाक़र'-ए-ख़ुश-मिसाल से बे-हुनरी शरीक थी उस की तिरे कमाल में