कोई वहशी चीज़ सी ज़ंजीर-ए-पा जैसे हवा दूर तक लेकिन सफ़र का सिलसिला जैसे हवा बंद कमरे में परागंदा ख़यालों की घुटन और दरवाज़े पे इक आवाज़-ए-पा जैसे हवा गिरती दीवारों के नीचे साए जैसे आदमी तंग गलियों में फ़क़त अक्स-ए-हवा जैसे हवा आसमाँ-ता-आसमाँ सुनसान सन्नाटे की झील दायरा-दर-दायरा मेरी नवा जैसे हवा दो लरज़ते हाथ जैसे साया फैलाए शजर काँपते होंटों पे इक हर्फ़-ए-दुआ जैसे हवा पानियों में डूबती जैसे रुतों की कश्तियाँ साहिलों पर चीख़ती कोई सदा जैसे हवा कितना ख़ाली है ये दामन जिस तरह दामान-ए-दश्त कुछ न कुछ तो दे उसे मेरे ख़ुदा जैसे हवा