कोरा काग़ज़ उदास है शायद उस को लफ़्ज़ों की आस है शायद आज दरिया की है तलब मुझ को एक मुद्दत की प्यास है शायद जान उस ने ख़ुशी से दे डाली उस का क़ातिल भी ख़ास है शायद ज़हर पीते हैं हाथ से उस के उस के लब पर मिठास है शायद जान हथेली पे थी मिरी कल तक जान अब तेरे पास है शायद शेर 'शमशेर' ऐसे कहता है उम्र उस की पचास है शायद