कोशिश-ए-ज़ब्त नहीं ऐ दिल-ए-नाशाद नहीं इल्तिजा अपनी हदों में हो तो फ़रियाद नहीं क़िस्सा-ए-दर्द किसी और की रूदाद नहीं एक मेरी ही ग़ज़ल है जो मुझे याद नहीं चोट खा कर भी लबों पर मिरे फ़रियाद नहीं और क्या है जो ये तौफ़ीक़-ए-ख़ुदा-दाद नहीं तुम कभी पुर्सिश-ए-हालात की ज़हमत तो करो कौन सी बात है ऐसी जो मुझे याद नहीं किस क़दर तूल थी मीआ'द-ए-असीरी तौबा अब भी ये वहम सा होता है कि आज़ाद नहीं तू ने किस के लिए काँटों को सजाया तू जान मैं ने क्यों फूल चुने थे ये मुझे याद नहीं यूँ तो हर रंग में है तेरे करम की तारीख़ काबिल-ए-ज़िक्र कोई बात मुझे याद नहीं अपने ही साए में गुज़रा हूँ हर इक दौर से मैं तुम मिरे साथ कहाँ तक थे मुझे याद नहीं रात-दिन सर्फ़-ए-इबादत तो नहीं है 'अंजुम' लेकिन उन में भी नहीं जिन को ख़ुदा याद नहीं