कोशिश तो है कि ज़ब्त को रुस्वा करूँ नहीं By Ghazal << याद तुम आए तो फिर बन गईं ... ज़बान रक़्स में है और झूम... >> कोशिश तो है कि ज़ब्त को रुस्वा करूँ नहीं हँस कर मिलूँ सभी से किसी पर खुलूँ नहीं क़ीमत चुका रहा हूँ मैं शोहरत की इस तरह वो हो के रह गया हूँ जो दर-अस्ल हूँ नहीं ऐ मौत कम ही रहता हूँ मैं अपने आप में ऐसा न हो न कि आए तू और मैं मिलूँ नहीं Share on: