कोसों दूर किनारा होगा कश्ती होगी दरिया होगा पास तुम्हें हो तुम ही बताओ कोई मुझ सा तन्हा होगा आओ और क़रीब आ जाओ वक़्त भी रस्ता तकता होगा तुम से हसीं तो और भी होंगे लेकिन कोई तुम सा होगा अब तो कुछ भी याद नहीं है हम ने तुम को चाहा होगा हम ने गरेबाँ चाक किया था हम को ही ख़ुद सीना होगा जब हम तेरा नाम न लेंगे वो भी एक ज़माना होगा वो भी एक हक़ीक़त होगी जिस का नाम फ़साना होगा कल की फ़िक्र कहाँ तक कीजे और बुरा अब कितना होगा हाँ वो 'इमाम' इक रुस्वा शायर तुम ने उस को देखा होगा