क्यूँ फ़ना से डरें बक़ा क्या है बुझ गया दिल ही जब रहा क्या है भर गया क्यूँ तसन्नोआ'त से जी पर्दा आँखों से उठ गया क्या है सुरमा-ए-दीदा-हा-ए-अहल-ए-नज़र बन गई है जो ख़ाक-ए-पा क्या है कैसे दुनिया वजूद में आई आफ़रीनश का मुद्दआ' क्या है जिस में अरबों जहाँ समाए हैं वो फ़ज़ा क्या है वो ख़ला क्या है चाँद की सम्त हैं दवाँ मौजें क्या कशिश है ये माजरा क्या है फैल जाती है किस तरह आवाज़ आँख का सेहर है ज़िया क्या है जिस्म-ए-बे-रूह को ख़बर ही नहीं दुख़्मा क्या गोर क्या चिता क्या है क्या जमादात से भी कम है बशर ज़र की पूजा से मुद्दआ' क्या है अक्स है अक्स हर शबीह यहाँ गूँज ही गूँज है सदा क्या है