क्यूँ हो बहाना-जू न क़ज़ा सर से पाँव तक ज़ालिम हैं आप की है अदा सर से पाँव तक साकित हैं बाद-ए-मर्ग क़वा सर से पाँव तक मोहरें लगा गई है क़ज़ा सर से पाँव तक घेरे थी तुझ को बर्क़-ए-अदा सर से पाँव तक क्यूँ नख़्ल-ए-तूर जल न गया सर से पाँव तक ज़ंजीर बन गई है क़ज़ा सर से पाँव तक गोया रगें हैं दाम-ए-बला सर से पाँव तक मैं ख़ुद ज़बान-ए-शुक्र बना सर से पाँव तक डूबे न क्यूँ असर में दुआ सर से पाँव तक मुँह चाँद उस पे ज़ुल्फ़-ए-रसा सर से पाँव तक क्यूँ लोट-पोट हो न अदा सर से पाँव तक सिद्क़ ओ सफ़ा सिखाता है नज़्ज़ारा-बाज़ को आईना-ए-जमाल तिरा सर से पाँव तक क़ासिद कहे गया मिरी ज़र्दी-ए-रुख़ का हाल इस दास्ताँ को ख़ूब रंगा सर से पाँव तक ऐ शम्अ तुझ से साफ़ मैं कहता हूँ दिल का हाल जलना ही था तो जल न गया सर से पाँव तक पीरी में काँपने लगे आज़ा-ए-जिस्म सब हुश्यार हिल गई ये बिना सर से पाँव तक शायद ख़िज़ाँ सबा का फ़साना सुना गई हर नख़्ल-ए-बाग़ काँप गया सर से पाँव तक दरिया-ए-इश्क़ में मुझे रखना न था क़दम डूबा तो ख़ूब डूब गया सर से पाँव तक ली नख़्ल-ए-तूर की न ख़बर तुम ने ऐ कलीम तुम देखते रहे वो जला सर से पाँव तक आग़ाज़ ही में आप ने कर दी ज़बान बंद क़िस्सा हमारा सुन न लिया सर से पाँव तक फैलाएँ या न हाथ को फैलाएँ शर्म से दस्त-ए-तलब हैं तेरे गदा सर से पाँव तक तेरा कहाँ जमाल कहाँ जल्वा-गाह-ए-तूर मूसा न फिर न देख लिया सर से पाँव तक अल्लाह 'शाद' ग़ैर की ये ऐब-जूईयाँ तू ख़ुद पे कर निगाह ज़रा सर से पाँव तक