क्यूँ कर चुभे न आँख में गुल ख़ार की तरह भाई है दिल को एक तरहदार की तरह हालत तलाश-ए-यार में ये हो गई मिरी जाता हूँ बैठ बैठ दिल-ए-ज़ार की तरह क्या दिल में ख़ार रश्क-ए-रुख़-ए-यार का चुभा बिगड़ी हुई है क्यूँ गुल-ए-गुलज़ार की तरह है कुछ न कुछ वहाँ भी असर दर्द-ए-इश्क़ का आँख उन की भी है इस दिल-ए-बीमार की तरह ऐ काश मेरे तार-ए-रग-ए-जाँ को तोड़ दे क़ातिल की तेग़ यार के इक़रार की तरह 'कैफ़ी' बिठाएँ आँखों पे क्यूँ आप को न लोग चुभती हुई है आप के अशआ'र की तरह