क्यूँ मैं बार-ए-दिगर जाऊँ फिर से उस के दर जाऊँ तुझ आँखों से जहाँ देखूँ बे-रंगी से डर जाऊँ तू चाहे तो जी उठ्ठूँ तू चाहे तो मर जाऊँ मैं बे-अंत समुंदर हूँ कैसे दरिया में उतर जाऊँ चादर-ए-शब हूँ मैं तेरी तू ओढ़े तो सँवर जाऊँ ख़्वाब न देखूँ तो 'अम्बर' शायद मैं भी मर जाऊँ