क्यूँ मेरे दुख चुनते हो तुम मेरे क्या लगते हो मुझ को जोड़ने बैठे हो अंदर से ख़ुद टूटे हो मेरे दुख की तहें हज़ार क्यूँ ख़ुद को उलझाते हो मुझ को सब कुछ मान लिया तुम भी कितने भोले हो प्यार मोहब्बत इश्क़ वफ़ा कैसी बातें करते हो ध्यान के कोरे काग़ज़ पर क्या क्या लिखते रहते हो दुनिया सब कुछ पढ़ती है दुनिया को क्या समझे हो मैं इक आवारा झोंका घर में कब तक रखते हो