क्यूँ नासेहा उधर को न मुँह कर के सोइए दिल तो कहे है साथ ही दिलबर के सोइए घबरा के उस का कहना वो हाए शब-ए-विसाल बस बस ज़रा अब आप तो हट कर के सोइए मैं आप से ख़फ़ा हूँ कि तुम रूठे हो पड़े बोहतान मेरे सर पे न यूँ धर के सोइए सोते में भी जो देखिए तो चौंक ही उठे किस तरह साथ ऐसे सितमगर के सोइए तुम लुत्फ़-ए-नश्शा देखो ज़रा तुम को देखें हम क्या लुत्फ़ है कि लेते ही साग़र के सोइए मशहूर है कि सूली पे भी नींद आती है या-रब शब-ए-फ़िराक़ में क्यूँकर के सोइए तकिया तो आप सर के तले रोज़ रखते हैं अब हाथ मेरे रख के तले सर के सोइए वो मुस्कुरा रहे हो लो वो आँख खुल गई यूँ कौन मानता है कि जग कर के सोइए पास-ए-अदू तो देखो हमें हुक्म है 'निज़ाम' शब को कहें न पास मिरे घर के सोइए