क्यूँ सादगी से उस की तकरार हो गई है तहज़ीब से तबीअ'त बेज़ार हो गई है निकली ज़बान से थी छोटी सी बात लेकिन माबैन दो दिलों के दीवार हो गई है कलियाँ खिला रही थी शोख़ी नसीम-आसा जब तंज़ बन गई है तलवार हो गई है दुनिया के मशग़लों में ये घिर गया है ऐसा अब दिल से बात करनी दुश्वार हो गई है फेरी निगाह मुझ से जैसे न जानते हों आँखों की सई-ए-इख़फ़ा इज़हार हो गई है ऊपर तले लगे हैं अम्बार हर तरह के नगरी ये हाफ़िज़ा की बाज़ार हो गई है आई है अर्ज़ सारी अब उस के दाएरे में तख़ईल पा-ब-जौलाँ पुर-कार हो गई है हामी भरी थी दिल ने तग़ईर-ए-रंग देखो जब तक लबों पे आई इंकार हो गई है