क्यूँ ये कहते हो क्या नहीं मालूम क्या मिरा मुद्दआ' नहीं मालूम दर्द-ए-दिल की दवा नहीं मालूम अब उमीदे-ए-शिफ़ा नहीं मालूम जब से तुम ने निगाह फेरी है दिल को क्या हो गया नहीं मालूम शिकवा समझो न तुम तो कह भी दूँ तुम को रस्म-ए-वफ़ा नहीं मालूम जान लेने की ठान ली है क्या क्यूँ हो मुझ से जुदा नहीं मालूम शिकवा-ए-बख़्त है अबस 'नादिर' तुझ को रब की रज़ा नहीं मालूम