कुछ आज इलाज-ए-दिल-ए-बीमार तो कर लें ऐ जान-ए-जहाँ आओ ज़रा प्यार तो कर लें मुँह हम को लगाता ही नहीं वो बुत-ए-काफ़िर कहता है ये अल्लाह से इंकार तो कर लें समझे हुए हैं काम निकलता है जुनूँ से कुछ तजरबा-ए-सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार तो कर लें सौ जान से हो जाऊँगा राज़ी मैं सज़ा पर पहले वो मुझे अपना गुनहगार तो कर लें हज से हमें इंकार नहीं हज़रत-ए-वाइ'ज़ तौफ़-ए-हरम-ए-कूचा-ए-दिलदार तो कर लें मंज़ूर वो क्यों करने लगे दा'वत-ए-'अकबर' ख़ैर इस से है क्या बहस हम इसरार तो कर लें