कुछ अपने दौर की भी कहानी लिखा करो पत्थर को मोम ख़ून को पानी लिखा करो जिद्दत की रौ में लोग कहाँ से कहाँ गए तुम से बने तो बात पुरानी लिखा करो वो अहद है कि शोला-फ़िशाँ बिजलियों को भी ग़ज़लों में रंग-ओ-नूर की रानी लिखा करो लफ़्ज़ों को अपने अस्ल मआ'नी से आर है अब दोस्तों को दुश्मन-ए-जानी लिखा करो है बे-हिसों की भीड़ न होगा कोई असर अख़बार में हज़ार गिरानी लिखा करो लिखने के वास्ते कोई उनवान चाहिए फ़रियाद-ओ-आह-ओ-अश्क-फ़िशानी लिखा करो शोहरत के ख़्वास्तगारो मिरा मशवरा है ये 'ग़ालिब' का अपने आप को सानी लिखा करो 'दानिश' ज़ह-ए-नसीब मिले ज़ख़्म-ए-लाला-रंग हर ज़ख़्म-ए-दिल को उन की निशानी लिखा करो