कुछ और पिला नशात की मय ये लज़्ज़त-ए-जिस्म है अजब शय अब भी वही गीत है वही लय हम वो नहीं अंजुमन वही है तख़य्युल में हर तलब है तहसील जो बात कहीं नहीं यहाँ है करते तिरा इंतिज़ार अबद तक लेकिन तिरा ए'तिबार ता-कै मुझ को तो न रास आई दूरी तुझ में भी वो बात अब नहीं है दीवानगियाँ कभी मिटी हैं हर-चंद रहा ज़माना दरपय समझाएँ 'ज़िया' मगर उन्हें क्या दिल ही से न बात हो सकी तय