कुछ दिन से इंतिज़ार-ए-सवाल-ए-दिगर में है वो मुज़्महिल हया जो किसी की नज़र में है सीखी यहीं मिरे दिल-ए-काफ़िर ने बंदगी रब्ब-ए-करीम है तू तिरी रहगुज़र में है माज़ी में जो मज़ा मिरी शाम-ओ-सहर में था अब वो फ़क़त तसव्वुर-ए-शाम-ओ-सहर में है क्या जाने किस को किस से है अब दाद की तलब वो ग़म जो मेरे दिल में है तेरी नज़र में है