कुछ दिन तो बसो मिरी आँखों में फिर ख़्वाब अगर हो जाओ तो क्या कोई रंग तो दो मिरे चेहरे को फिर ज़ख़्म अगर महकाओ तो क्या जब हम ही न महके फिर साहब तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या इक आइना था सो टूट गया अब ख़ुद से अगर शरमाओ तो क्या तुम आस बंधाने वाले थे अब तुम भी हमें ठुकराओ तो क्या दुनिया भी वही और तुम भी वही फिर तुम से आस लगाओ तो क्या मैं तन्हा था मैं तन्हा हूँ तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या जब देखने वाला कोई नहीं बुझ जाओ तो क्या गहनाओ तो क्या अब वहम है ये दुनिया इस में कुछ खोओ तो क्या और पाओ तो क्या है यूँ भी ज़ियाँ और यूँ भी ज़ियाँ जी जाओ तो क्या मर जाओ तो क्या