कुछ इस के सिवा ख़्वाहिश-ए-सादा नहीं रखते हम तुझ से बिछड़ने का इरादा नहीं रखते कब दिल की तरफ़ लौट के आएँगे सफ़ीने सहरा के बगूले ग़म-ए-जादा नहीं रखते क्या ख़ाक सिमट पाएँगे दुनिया के बखेड़े हम लोग तो दामन भी कुशादा नहीं रखते उड़ जाएँगे हम भी वरक़-ए-ख़ाक से इक दिन रंगों के सिवा कोई लिबादा नहीं रखते हर आँख को हम साग़र-ओ-मीना नहीं कहते हर आँख पे हम तोहमत-ए-बादा नहीं रखते क़ाएम भरम अपना है असीरी से वगर्ना हम ताक़त-ए-परवाज़ ज़ियादा नहीं रखते