कुछ तग़य्युर मिरे अहवाल-ए-परेशाँ में नहीं ऐसे आलम में हूँ जो आलम-ए-इम्काँ में नहीं सुब्ह-ए-महशर भी दिखाई नहीं देती यारब रोज़-ए-बद भी तो नसीब-ए-शब-ए-हिज्राँ में नहीं वहशत-ए-इश्क़ को साबित-क़दमी भी है ज़रूर क़ैस का नक़्श-ए-क़दम तक तो बयाबाँ में नहीं हो गया ज़ौक़ फ़ज़ा-ए-ख़लिश-ए-याद-ए-मिज़ा कौन कहता है कि लज़्ज़त तिरे पैकाँ में नहीं दश्त-ए-वहशत में उड़े फिरते हैं आराम से हम जो सिफ़त ज़ोफ़ में है तख़्त-ए-सुलैमाँ में नहीं