कुछ तो बोलो मियाँ हुआ क्या है इस क़दर ख़ामुशी वज्ह क्या है फिर रहे हो गली गली दर दर यूँ भटकने से फ़ाएदा क्या है मैं जो कहता हूँ तुम सुनो तो सही बहस-ओ-तकरार में रखा क्या है आज डूबे तो फिर न उभरेंगे मौज-ए-हस्ती का आसरा क्या है क़तरा-ए-बे-कराँ है गरचे सनम फिर सनम-गर बता ख़ुदा क्या है दिल हमारे कभी मिले ही नहीं हम मिलें भी तो फ़ाएदा क्या है रफ़्ता रफ़्ता बदल गया 'अबरार' तुम भी बदलो मियाँ बुरा क्या है