कुछ तो मायूस दिल तेरे बस में भी है ज़िंदगी का हुनर ख़ार-ओ-ख़स में भी है आप का जो इरादा हो कह दीजिए दिल अभी कुछ मेरी दस्तरस में भी है तेरी मर्ज़ी से मैं माँगता हूँ तुझे मेरा किरदार मेरी हवस में भी है आ कि टूटे तअ'ल्लुक़ को फिर जोड़ लें तेरे बस में भी है मेरे बस में भी है शहर-ए-गुल में भी हैं लाख पाबंदियाँ और आज़ादी-ए-जाँ क़फ़स में भी है हो सलीक़ा तो फिर आदमी के लिए वुसअ'त-ए-ज़िंदगी इक नफ़स में भी है देखिए दिल का 'असरार' क्या हश्र हो उस की आमादगी पेश-ओ-पस में भी है