कुछ उस ने सोचा तो था मगर काम कर दिया था जो मेरे ख़्वाबों को इतने रंगों से भर दिया था ग़ुबार में भीग सी गई थी फ़ज़ा किसी ने रुकी हुई रात को वो रंग-ए-सहर दिया था इसी के अंदर थी सारी पेचीदगी कि उस ने कहाँ खड़ा था मैं और इशारा किधर दिया था चलो इस अस्ना में मेरी आँखें तो खुल गई हैं कभी जो उस ने मुझे फ़रेब-ए-नज़र दिया था किसी भी दिन बैठ कर ये दुनिया हिसाब कर ले कि मुझ से कितना लिया है और कस क़दर दिया था मैं कर सकूँ सब के सामने अपनी ऐब-जूई ये देने वाले ने ख़ास मुझ को हुनर दिया था इसी में था डूबना उभरना मिरा मुक़द्दर लहू के अंदर मुझे इक ऐसा भँवर दिया था जो धूप की आग उस ने बरसाई थी ज़मीं पर तो छाँव में बैठने की ख़ातिर शजर दिया था ये उस की मर्ज़ी कि ले लिया है उसी ने वापस 'ज़फ़र' मिरी शाएरी को जिस ने असर दिया था