कूचे में उस के भीड़ थी बाज़ार की तरह ललचाई हर नज़र थी ख़रीदार की तरह उस का वजूद एक पहेली से कम नहीं इक़रार भी वो करता है इंकार की तरह दिल के सियाह दाग़ न धोओगे जब तलक छुपते फिरोगे यूँही गुनहगार की तरह इक अजनबी ने आ के फ़ज़ा को बदल दिया बस्ती पे छा गया है वो असरार की तरह ये भी 'रईस' अपने मुक़द्दर की बात है मिलने को वो मिले भी तो अग़्यार की तरह