कुछ ऐसे 'इश्क़ का वो कारोबार करता था जफ़ाएँ नक़्द वफ़ाएँ उधार करता था कहाँ बदन पे कभी कोई वार करता था अजब शिकारी था दिल का शिकार करता था फिर एक रोज़ क़ज़ा मेरे पास से गुज़री मैं ज़िंदगी का बहुत ए'तिबार करता था उसी में लज़्ज़त-ए-हिज्र-ओ-विसाल सब कुछ था वो एक पल जो मुझे सोगवार करता था समझ लिया था रफ़ूगर जिसे मोहब्बत का क़बा-ए-‘इश्क़ वही तार-तार करता था मिरी ही 'अक़्ल से लेता था मशवरे सब 'इश्क़ मिरा जुनूँ ही मुझे होशियार करता था