कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए तुम्हारा हिज्र बहुत दूर से गुज़र जाए उदासियों से भरी कच्ची उम्र की ये नस्ल जो शायरी न करे तो दुखों से मर जाए पचास लोगों से वो रोज़ मिलती है और मैं किसी को देख लूँ तो उस का मुँह उतर जाए घटा छटे तो दिखे चाँद भी सितारे भी जो तुम हटो तो किसी और पर नज़र जाए हज़ार साल में तय्यार होने वाला मर्द उस एक गोद में सर रखते ही बिखर जाए मैं उस बदन से सभी पैरहन उतारूँ और अंधेरा जिस्म पे कपड़े का काम कर जाए मेरी हवस को कोई दूसरा मयस्सर हो तुम्हारा हुस्न किसी और से सँवर जाए