कुछ बद-गुमानियाँ हैं कुछ बद-ज़बानियाँ हैं मुद्दत से उन की हम पर ये मेहरबानियाँ हैं आता है जब किसी पर रुकता नहीं है हरगिज़ मानिंद-ए-मौज-ए-दरिया दिल की रवानियाँ हैं पैदा कहाँ हैं होते अब 'ज़ौक़' और 'ग़ालिब' हाँ 'दाग़' और 'हाली' उन की निशानियाँ हैं जो पास था वो खोया नाम-ए-सलफ़ डुबोया क्या ख़ाक अपनी ऐ दिल अब ज़िंदगानियाँ हैं ऐ दिल न छेड़ क़िस्सा हो दर्द जिस से पैदा ये शे'र-ख़्वानियाँ है या नौहा-ख़्वानियाँ हैं क्या हम ने ये निकाली तर्ज़-ए-ग़ज़ल निराली कुछ गुल-फ़िशानियाँ हैं कुछ ख़ूँ-फ़िशानियाँ हैं बाद-ए-ख़िज़ाँ ने गुलशन वीराँ किया है सारा बुलबुल की अब कहाँ वो रंगीं-बयानियाँ हैं जौर-ओ-जफ़ा के ऐसे हम हो गए हैं ख़ूगर ना-मेहरबानियाँ भी अब मेहरबानियाँ हैं ऐ 'मशरिक़ी' जहाँ में देखा यही तमाशा कुछ मातम-ओ-अलम है कुछ शादमानियाँ हैं