कुछ देर तो दुनिया मिरे पहलू में खड़ी थी फिर तीर बनी और कलेजे में गड़ी थी आँखों की फ़सीलों से लहू फूट रहा था ख़्वाबों के जज़ीरे में कोई लाश पड़ी थी सब रंग निकल आए थे तस्वीर से बाहर तस्वीर वही जो मिरे चेहरे पे जुड़ी थी मैं चाँद हथेली पे लिए झूम रहा था और टूटते तारों की हर इक सम्त झड़ी थी अल्फ़ाज़ किसी साए में दम लेने लगे थे आवाज़ के सहरा में अभी धूप कड़ी थी फिर मैं ने उसे प्यार किया दिल में उतारा वो शक्ल जो कमरे में ज़माने से पड़ी थी हर शख़्स के हाथों में था ख़ुद उस का गरेबाँ इक आग थी साँसों में अज़िय्यत की घड़ी थी