कुछ देर तो सब कुछ टूटने का माहौल रहा मत पूछ कि फिर इस दिल पर कैसा हौल रहा जब चाहा उस में ख़ुद को छुपा लेते हैं सब आवाज़ों का हर ज़ात पे कोई ख़ोल रहा यूँ लगता था जो बात है उल्टी पड़ती है अब क्या ही कहें तब हौल सा कोई हौल रहा अब कौन कहाँ आया कि गया मालूम नहीं बस क़दमों की आहट का इक माहौल रहा कह भी न सका मैं उस में शामिल था कि नहीं बस एक छलावे सा मस्तों का ग़ोल रहा आवाज़-ए-फ़क़ीराना कश्कोल उम्मीदों का अब ये तो रही आवाज़ वहाँ कश्कोल रहा हम 'तल्ख़' फ़क़त उस दौर की अब कुछ यादें हैं जब दर्द भी था कहने का भी माहौल रहा