कुछ दिनों से ये हुई बात नई जब मिलो उन से मुलाक़ात नई मैं उसी वज़-ए-कुहन का पाबंद सीख लीं आप ने आदात नई रोज़-ओ-शब का भी तवातुर टूटा सुब्ह-दम फूट पड़ी रात नई बाज़ी-ए-इश्क़ है कितनी दिलचस्प हुस्न की चाल वही मात नई आम हैं ताज-महल वा'दों के आप क्या लाए हैं सौग़ात नई