कुछ कम नहीं हैं शम्अ से दिल की लगन में हम फ़ानूस में वो जलती है याँ पैरहन में हम हैं तुफ़्ता-जाँ मुफ़ारक़त-ए-गुल-बदन में हम ऐसा न हो कि आग लगा दें चमन में हम गुम होंगे बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-शिकन-दर-शिकन में हम क़ब्ज़ा करेंगे चीन को ले कर ख़ुतन में हम गर ये ही छेड़ दस्त-ए-जुनूँ की रही तो बस मर कर भी सीना चाक करेंगे कफ़न में हम महव-ए-ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ उम्र भर रहे मशहूर क्यूँ न हों कहो दीवाना-पन में हम होंगे अज़ीज़ ख़ल्क़ की नज़रों में देखना गिर कर भी अपने यार के चाह-ए-ज़क़न में हम छक्के ही छूट जाएँगे ग़ैरों के देखना आ निकले हाँ कभी जो तिरी अंजुमन में हम ऐ अंदलीब दावा-ए-बेहूदा पर कहीं एक आध गुल का मुँह न मसल दें चमन में हम आशिक़ हुए हैं पर्दा-नशीं पर बस इस लिए रखते हैं सोज़-ए-इश्क़ निहाँ जान ओ तन में हम ज़ालिम की सच मसल है कि रस्सी दराज़ है मिसदाक़ उस का पाते हैं चर्ख़-ए-कुहन में हम अन्क़ा का 'ऐश' नाम तो है गो निशाँ नहीं याँ वो भी खो चुके हैं तलाश-ए-दहन में हम