कुछ न किया अरबाब-ए-जुनूँ ने फिर भी इतना काम किया दार-ब-दार उफ़्ताद से खेले ज़ुल्फ़-ब-ज़ुल्फ़ आराम किया सावन शोले भड़के गुलशन गुलशन आग लगी कैसा सूरज उभरा जिस ने सुब्ह को आतिश-नाम किया तन्हाई भी सन्नाटे भी दिल को डसते जाते हैं रहगीरो किस देस में आ कर हम ने आज क़याम किया क़र्या-ए-गुल से दश्त-ए-बला तक अहल-ए-हवस की यूरिश थी कुछ तो समझ कर दीवानों ने तर्क-ए-जादा-ए-आम किया रात के हाथों कब तक रहता शहर-ए-निगाराँ तीरा-ओ-तार अपने लहू से हम ने चराग़ाँ आख़िर गाम-ब-गाम किया ऐश भी गुज़रे रंज भी गुज़रे दिल की हालत एक रही कब जश्न-ए-आग़ाज़ मनाया कब ख़ौफ़-ए-अंजाम किया 'मीर' के ज्ञानी लाखों देखे 'मीर' सी किस में बात 'उरूज' मेरी बीती आप ने कह लें ख़ुद को अबस बदनाम किया