कुछ नहीं हासिल सिपर को चीर को या तलवार तोड़ है अगर ताक़त तो मेरे आँसुओं का तार तोड़ तेरी चश्म ओ ज़ुल्फ़ से सौदा-ए-हम-चश्मी किया ऐ सनम बादाम-ए-चश्म-ए-आहू-ए-तातार तोड़ ज़ुल्फ़ में मोती पिरोना मेरे हक़ में ज़हर है आज ऐ मश्शाता-ए-दंदाँ दहान-ए-यार तोड़ सिलसिला गब्र-ओ-मुसलमाँ की अदावत का मिटा ऐ परी बे-पर्दा हो कर सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार तोड़ किब्र भी है शिर्क ऐ ज़ाहिद मुवह्हिद के हुज़ूर ले के तेशा ख़ाकसारी का बुत-ए-पिंदार तोड़ आब-ए-गौहर से बदन की आब होती है ख़राब बोझ है ऐ नाज़नीं ये मोतियों का हार तोड़ शर्म कब तक ऐ परी ला हाथ कर इक़रार-ए-वस्ल अपने दिल को सख़्त कर के रिश्ता-ए-इंकार तोड़ सब्र कब तक राह पैदा हो कि ऐ दिल जान जाए एक टक्कर मार कर सर फोड़ या दीवार तोड़ ऐ ज़ुलेख़ा नक़्द-ए-जाँ हम दें लगा तू गंज-ए-ज़र क़ीमत-ए-यूसुफ़ का हो जाए सर-ए-बाज़ार तोड़ वस्फ़-ए-चश्म-ए-यार लिखने के लिए ऐ दस्त-ए-शौक़ चल किसी गुलशन में शाख़-ए-नर्गिस-ए-बीमार तोड़ चढ़ के कोठे पर दिखा दे अपने अबरू में शिकन ऐ परी-पैकर हलाक-ए-चर्ख़ की तलवार तोड़ आइना है माने-ए-नज़्ज़ारा-ए-हुस्न-ओ-जमाल हो सके तो सद्द-ए-अस्कन्दर को ऐ दिलदार तोड़ माने-ए-मस्ती को बद-मस्ती दिखाना चाहिए मोहतसिब का शीशा-ए-दिल ऐ बुत-ए-मय-ख़्वार तोड़ हुस्न-ए-पेशानी से क़स्र-ए-चर्ख़ को बर्बाद कर लौह-ए-क़ुरआँ से तिलिस्म-ए-गुम्बद-ए-दव्वार तोड़ नाम को ऐ दिल न रख अस्बाब-ए-इस्लाह-ए-जुनूँ वादी-ए-वहशत में चल कर नश्तर-ए-हर-ख़ार तोड़ आँखें फोड़ उस की जो देखे बे-इजाज़त मुँह तिरा शौक़ से ऐ मस्त जाम-ए-शर्बत-ए-दीदार तोड़ इश्क़-ए-ज़ुल्फ़-ए-अम्बर-अफ़्शाँ का न टूटे सिलसिला पाँव की ज़ंजीर ऐ दस्त-ए-जुनूँ सौ बार तोड़ साइल-ए-बोसा हैं उन को देख चश्म-ए-क़हर से आँख के ढेलों से ऐ बुत ख़ातिर-ए-अग़्यार तोड़ हुस्न-ए-ग़म में एक मुद्दत से मुक़य्यद है 'मुनीर' फ़िक्र-ए-दुनिया का हिसार ऐ हैदर-ए-कर्रार तोड़