कुछ सामने हुआ है तो कुछ राज़ में हुआ आग़ाज़-ए-ज़िंदगी 'अजब अंदाज़ में हुआ काटे गए गुलाब लगाए गए गुलाब जो कुछ हुआ बहार के ए'ज़ाज़ में हुआ जो फ़ैसले हुए पस-ए-पर्दा उसी के थे ए'लान जो हुआ मिरी आवाज़ में हुआ जो मो'जिज़े हुए तिरी तख़्ईल में हुए जो सानिहा हुआ मिरी परवाज़ में हुआ वो मेरी ख़ल्वतों में था दूरी के बावजूद ये मो'जिज़ा फ़िराक़ के आग़ाज़ में हुआ