कुफ़्र मोमिन है न करना दिलबराँ से इख़्तिलात कर लिया काबे ने भी कै दिन बुताँ से इख़्तिलात बंदा उस बुलबुल का हूँ जो बू-ए-गुल के वास्ते गर्म रक्खे हाए हर ख़ार-ए-ख़िज़ाँ से इख़्तिलात ख़ाकसारों की है उल्फ़त रहरवान-ए-इश्क़ से जैसे गर्द-ए-राह का है कारवाँ से इख़्तिलात क्यूँ न होवे पुख़्ता ओ बर-जस्ता रौशन दिल का शेर दूद ओ शोले सा सुख़न को है ज़बाँ से इख़्तिलात दिल-शिकन के वास्ते दस्त-ए-दुआ 'उज़लत' उठाए जैसे ग़ुंचे का नसीम-ए-गुल्सिताँ से इख़्तिलात