कुर्रा-ए-नूर का बाशिंदा मुझे देखता है सुब्ह-ए-नौरोज़ हूँ जोइंदा मुझे देखता है उस की दुनिया से किसी तौर नहीं बनती मिरी और वो है कि नुमाइंदा मुझे देखता है मुझ को आहंग-ओ-तवाज़ुन के हुनर आते हैं रक़्स करता हूँ तो साज़िंदा मुझे देखता है मैं हूँ तस्लीम के रस्ते में बग़ावत का चराग़ ज़ुल्म हर ताक़ में ताबिंदा मुझे देखता है इश्क़ हूँ और नुमू करती हुई ख़ाक से हूँ या'नी हर शख़्स ही आइंदा मुझे देखता है मेरी तारीख़ का माख़ज़ मिरी दानाई है वक़्त हर दौर में पाइंदा मुझे देखता है मैं ने तहज़ीब की मिट्टी में यक़ीं बोया था फूल खिलते हैं तो कारिंदा मुझे देखता है अपनी दानिस्त में चूमा था कोई आब-फ़िशार चश्मक-ए-नम से वो शर्मिंदा मुझे देखता है किस ने माहौल पे छिड़का है मिरा सब्र 'मुनीर' मर भी जाऊँ तो जहाँ ज़िंदा मुझे देखता है