क्या अज़िय्यत है मर्द होने की कोई भी जा नहीं है रोने की दायरा क़ैद की अलामत है चाहे अँगूठी पहनो सोने की साँस फूंकी गई बड़ा एहसान चाबी भर दी गई खिलौने की ऐसी सर्दी में शर्त चादर है ओढ़ने की हो या बिछौने की बोझ जैसा था जिस का था मुझे क्या मुझे उजरत मिली है ढोने की मैं जज़ीरे डुबोने वाला हूँ ख़ू नहीं कश्तियाँ डुबोने की