क्या बचे दिल जान-लेवा उस का हर अंदाज़ है ग़म्ज़ा है इश्वा है शोख़ी है अदा है नाज़ है महफ़िल-ए-इशरत में मेरा दिल नवा-पर्दाज़ है नाला-ए-हसरत मिरा गोया सदा-ए-साज़ है तौबा भी कर लेंगे हम जब वक़्त उस का आएगा हज़रत-ए-वाइ'ज़ दर-ए-तौबा अभी तो बाज़ है होगी फिर बे-ए'तिनाई है अभी तो इल्तिफ़ात फिर वही अंजाम होगा फिर वही आग़ाज़ है देख तो इस बुत को ज़ाहिद और कह ईमान से तेरी हूरों में ये रानाई है ये अंदाज़ है दिल जिगर छिद जाते हैं और कुछ ख़बर होती नहीं वो निगाह-ए-नाज़ गोया तीर-बे-आवाज़ है मेरी हस्ती इक मुअ'म्मा है जिसे समझा न मैं या ख़ुदा ये भी तिरी क़ुदरत का कोई राज़ है दर क़फ़स का खोल दे सय्याद इत्मीनान से तेरे सैद-ए-शौक़ को कब ख़्वाहिश-ए-पर्वाज़ है सुन के मेरा क़िस्सा-ए-ग़म उन का कहना नाज़ से वाह क्या तर्ज़-ए-बयाँ है वाह क्या अंदाज़ है दिल लगाते ही मुझे लाले पड़े हैं जान के उस का क्या अंजाम होगा जिस का ये आग़ाज़ है हाए 'नश्तर' वो मिरा हमदर्द दिल ग़म-ख़्वार दिल अब कहाँ है हम-नशीं कोई कहाँ हमराज़ है