क्या बताएँ क्या कल शब आख़िरी पहर देखा कार-गाह-ए-गर्दूं पर चाँद का सफ़र देखा जल्वा-गाह-ए-हस्ती में हुस्न जल्वा-गर देखा हाए हम-नफ़स मत पूछ कब कहाँ किधर देखा आह वो शब-ए-पुर-नम उफ़ वो नूर की महफ़िल दरमियाँ सितारों के जल्वा-ए-क़मर देखा उस जमाल-ए-उर्यां को सिर्फ़ इक नज़र देखा फिर वही नज़र आया जब जहाँ जिधर देखा हाए ऐ मुजस्सम हुस्न रश्क-ए-नूर-ओ-ताबानी तू ने मेरे ख़िर्मन को ख़ूब फूँक कर देखा शब ढली तो ऐ 'सालिम' मह नशेब में उतरा इक चकोर को देखा और ब-चश्म-ए-तर देखा