क्या देखें हम सूरज चाँद सितारों में उन का चेहरा रौशन है अँधियारों में रोज़ तुम्हारी ख़बरें पढ़ते रहते हैं तुम तो बस अब मिलते हो अख़बारों में दरवाज़े पर नाम तुम्हारा लिक्खा है नक़्श तुम्हारे सब्त हुए दीवारों में बच्चे ख़ौफ़ से घर से बाहर न निकलें धूल उड़ती है गलियों में चौबारों में अपने जैसी फ़ानी चीज़ बनाता है इक ये कमी है इंसाँ के शहकारों में पेशानी पर दाग़ नुमायाँ रहता है सज्दे करते फिरते हैं दरबारों में इल्म हुनर और फ़न तो अब मतरूक हुए खोटे सिक्के चलते हैं बाज़ारों में अहद-ए-नौ की 'नुज़हत' हम बुनियाद रखें फ़िक्र नई अब शामिल हो फ़न-पारों में