क्या दिन थे जब छुप छुप कर तुम पास हमारे आते थे काँपते थे बदनामी के डर से आँसू पी पी जाते थे हाए जवानी क्या मौसम था अब वो दिन याद आते हैं रूठते थे हम हर-दम उन पे और वो आ के मनाते थे हाए ग़ज़ब है मुझ वहशी को उस मौसम में क़ैद किया सुन जब शोर-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ मुर्ग़-ए-क़फ़स घबराते थे ज़िक्र किया मैं आप का किस से किस के आगे नाम लिया दुश्मन थे वो लोग मिरे जो आप के तईं बहकाते थे हाए वो पहले चाह का आलम किस से मैं इज़हार करूँ मैं तो हिजाब से आप ख़जिल था वो मुझ से शरमाते थे उस से 'हवस' मिलना मुश्किल था पर वो हम से दूर न थे उन की ही तस्वीर से हर-दम अपना जी बहलाते थे