क्या है साकिन कोई कह सकता है क्या चल रहा है

क्या है साकिन कोई कह सकता है क्या चल रहा है
दश्त-ए-तस्वीर में नक़्श-ए-कफ़-ए-पा चल रहा है

काएनातों के भँवर डूब रहे हैं मुझ में
किस को मालूम मिरे ज़ह्न में क्या चल रहा है

अपने सीने में लिए चौदह अरब साल का दुख
मैं अकेला तो नहीं साथ ख़ुदा चल रहा है

मुतमइन कैसे किसी और से हो पाए वो दिल
जिस का ख़ुद अपनी ही धड़कन से गिला चल रहा है

सुन रहा हूँ मैं चटक ग़ुंचा-ए-मुस्तक़बिल की
बाग़ में तज़्किरा-ए-बाद-ए-सबा चल रहा है

साँस चलती है तिरे हिज्र में ऐसे मेरी
जैसे सहरा में कोई आबला-पा चल रहा है

एक पाँसे में पलट सकती है बाज़ी प्यारे
देखता जा अभी साँसों का जुआ चल रहा है

कुछ भी साकिन नहीं इस आलम-ए-कुन में 'अरमान'
हस्ब-ए-तौफ़ीक़ हर-इक छोटा-बड़ा चल रहा है


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