क्या हक़ीक़त में नहीं थे ये सज़ा-वार तिरे क्यूँ शिफ़ा-याब न हो पाए ये बीमार तिरे अब्र क्या क्या न इनायात के बरसे लेकिन जाँ-ब-लब आज भी हैं तिश्ना-ए-दीदार तिरे है सताइश की तमन्ना न सिले की परवा किस क़दर सादा-तबीअत हैं परस्तार तिरे तुझ से करते हैं तक़ाज़ा तिरी तस्वीरों का हम हक़ीक़त में अगरचे हैं तलबगार तिरे मर गया क्या तिरा शायर तिरा 'कौसर'-नियाज़ी सूने सूने से हैं क्यूँ कूचा ओ बाज़ार तिरे