क्या हिज्र में जी निढाल करना कुछ ज़िक्र-ए-शब-ए-विसाल करना जो कुछ भी गुज़र रही है सह लो कुछ उस से न अर्ज़-ए-हाल करना ग़म उस के अता किए हुए हैं ग़म का न कभी मलाल करना मैं तुम से बिछड़ के जी सकूँगा ऐसा न कभी ख़याल करना जिस तरह जिए हैं हम जहाँ में पेश ऐसी कोई मिसाल करना मैं जिस का जवाब न दे पाऊँ ऐसा भी कोई सवाल करना तुम साथ रहे तो हम ने 'वाली' सीखा ही नहीं कमाल करना