क्या हुए फूल से बदन कुछ सोच छुप गए चाँद क्यूँ मअ'न कुछ सोच क्यूँ सिसकती है चाँदनी शब-भर आहें भरती है क्यूँ पवन कुछ सोच सर झुकाए खड़ी रही पहरों तेरी दहलीज़ पर किरन कुछ सोच रूह का साथ कौन दाइम है फूल से उठ गई फबन कुछ सोच बाम-ओ-दर पे भी कुछ उदासी है खोए खोए से हैं चमन कुछ सोच देख हर शाख़ है कड़ी ज़ंजीर बाग़ में जा न दफ़अ'तन कुछ सोच