क्या हुई मेरी जवानी जोश पर आई हुई हाए वो नाज़ुक गुलाबी मेरी छलकाई हुई जल्वा-गह में आज ये किस की तमाशाई हुई तूर से हम ले के आए आँख पथराई हुई हश्र में फ़ित्नों से अच्छी बज़्म-आराई हुई आ के दुनिया ख़ुद तमाशा ख़ुद-तमाशाई हुई ये भी शामत थी मिरे आ'माल की लाई हुई सब से पहले हश्र के दिन मेरी रुस्वाई हुई मैं चला दोज़ख़ को लेकिन उस की रहमत देख ले आँख मेरी सू-ए-कौसर आज ललचाई हुई उस की ठोकर के निशाँ सब बन गए दाग़-ए-सुजूद ये जबीं है किस बुत-ए-काफ़िर की ठुकराई हुई हश्र में क़ातिल ने देखी है लहू की कोई छींट सू-ए-दामन क्यूँ झुकी है आँख शर्माई हुई ताज़गी सी आ गई उन का तबस्सुम देख कर खिल उठीं कलियाँ मिरे मदफ़न की मुरझाई हुई रह गई याद-ए-जवानी वो जवानी अब कहाँ दाग़-ए-दामन है मिटे सर-जोश छलकाई हुई देखते वो भी तो आ जाते ज़रूर आँखों में अश्क दिल से रुख़्सत इस तरह दिल की शकेबाई हुई ऐ क़यामत आ भी तेरा हो रहा है इंतिज़ार उन के दर पर लाश इक रखी है काफ़्नाई हुई नीम-उर्यां कुछ नुमाइश हुस्न की थी वस्ल में छेड़ने को रात हीला उन की अंगड़ाई हुई ख़ाक फाँकी मस्जिदों में जा रहे जब हम कभी मय-कदों में आ रहे तो बादा-पैमाई हुई हर लहद से साफ़ मिलता है क़यामत का जवाब ख़ाक दर-दर छानती है उन की ठुकराई हुई मंज़िलों पीछे हैं राह-ए-इश्क़ में फ़रहाद-ओ-क़ैस ये हँसें उस को अब ऐसी मेरी रुस्वाई हुई रात-दिन अंगड़ाइयाँ वो लें मिरी आग़ोश में जिन हसीनों के लिए पैदा ये अंगड़ाई हुई वो भी घबराए हुए थी बात भी थी शर्म की रह गई होंठों में दब कर होंठ तक आई हुई नाम है मय-ए-बू नहीं तल्ख़ी नहीं तेज़ी नहीं मुद्दतों ज़ाहिद ने पी है मेरी खिंचवाई हुई है नुमायाँ आज सब मीना-परस्तों में 'रियाज़' जाम-ए-जम से बढ़ के क़द्र-ए-जाम-ए-मीनाई हुई