क्या हम को दिया शाम ने क्या देगा सवेरा होगा न कभी ख़त्म ये दिन-रात का फेरा खे़मे को सँभालेंगी न कमज़ोर तनाबें आँधी है बहुत ज़ोर की उड़ जाएगा डेरा हम-ज़ाद तिरे शहर में फिरते हैं सर-ए-आम हर घर में है सन्नाटे के भूतों का बसेरा कसरत से घटाओं की नज़र आया न सूरज है चाँद के अतराफ़ सियह अब्र का घेरा आकाश में तारे हैं न धरती पे हैं जुगनू उफ़ रात बलाओं की ये जंगल का अंधेरा नागिन हो कोई ज़ुल्फ़ की जादू का कोई नाग झूमेंगे मिरी बीन पे सब मैं हूँ सपेरा